रंगों के त्योहार होली के बारे रोचक बातें (वीडियो सहित)
होली के बारे में आप में से ज्यादातर लोग काफी कुछ जानते हैं, मगर कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें होली के पीछे छुपी मान्यता और कहानी के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं है। आज हम आपको ऐसे ही कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में आपको जरूर पता होना चाहिए। तो देर किस बात की आइए जानते हैं इन इंटरेस्टिंग फैक्ट्स के बारे में-
कब मनाई जाती है होली-
होली का त्योहार हर साल वसंत ऋतु में मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार होली फाल्गुन मास की मनाई जाती है। वहीं इंग्लिश कलेंडर की बात करें तो होली अधिकतर मार्च के महीने में मनाई जाती है, हालांकि कई बार फरवरी और अप्रैल के महीने में भी होली पड़ जाती है। प्रभु कृष्ण के जन्म स्थान में होली को कम से कम 16 दिनों तक मनाया जाता हैं।
Video - https://youtu.be/NP-8Mp66pUE
प्राचीन त्योहारों में से एक है होली
होली प्राचीन त्योहारों में से एक है, जिसे होलिका, होली या होलाका नाम से अलग-अलग जगहों पर मनाया जाता है। वसंत के मौसम में मनाए जाने के कारण इस त्योहार को वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा जाता है।
प्राचीन इतिहास से जुड़ा है यह त्योहार
इतिहासकारों की मानें तो आर्यों के समय में इस त्योहार का प्रचलन था, मगर उस दौरान यह केवल भारत में ही मनाया जाता था। बता दें कि इस त्योहार का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक किताबों में भी मिलता है, जिससे पता चलता है कि लंबे समय से हमारी संस्कृति का हिस्सा है। नारद पुराण और भविष्य पुराण में भी इस त्योहार का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र में रामगढ़ नामक स्थान पर करीब 300 साल पुराने अभिलेख मिले हैं, जिनमें होली में बारे में लिखा गया है। इतना ही नहीं संस्कृत भाषी कवियों ने भी होली का उल्लेख वसंतोत्सव नाम से अपनी कविताओं में बड़ी खूबसूरती से किया है।
चित्रों में मिलता है होली का उल्लेख
प्राचीन चित्रों और मंदिर की दीवारों पर ही होली से जुड़ी खूबसूरत चित्रकारी देखने को मिलती हैं। विजयनगर की राजधानी हंपी में बने एक चित्र फलक पर होली के कई खूबसूरत चित्रों को उकेरा गया है। इन चित्रों में राजकुमारियों, राजकुमार और दासियों को आपस में होली खेलते दिखाया गया है। इतना ही नहीं अहमदनगर में बनी एक चित्र आकृति का विषय ही वसंत रागिनी है, जिसमें राजपरिवार में एक दंपत्ति बगीचे में झूला झूलता दिखाया गया है और उनके आसपास की दासियों को रंग में खेलते और हंसते-गाते दिखाया गया है।
कृष्ण और होली
होली का जिक्र बिना श्री कृष्ण के अधूरा है। श्री कृष्ण के जन्म स्थान ब्रज में 16 दिन पहले से ही हर साल होली मनाई जाने लगती है, बरसाना की लट्ठमार होली को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इसमें महिलाएं मोटी बांस की लाठियों से पुरुषों को मारती हैं और बचाव में पुरुष उनपर पानी डालते हैं। अगर पुरुष अपने आपको नहीं बचा पाते हैं तो महिलाएं उन्हें अपनी तरह से साड़ी पहनाती हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण गोपियों से ऐसे ही हार मान लेते थे और उन्हें भी साड़ी पहनकर नाचना पड़ता था।
मुगलकाल में होली
इतिहासकारों की मानें तो होली की प्राचीन परंपरा का विरोध कभी भी मुगल शासकों द्वारा नहीं किया गया। बल्कि कई ऐसे मुगल शासक रहे, जिन्होंने होली के त्योहार को और भी धूमधाम से आयोजित किया है। अकबर, हुमायूं, जहांगीर और शाहजहां ऐसे मुगल शासक थे, जो महीनों पहले से ही रंगोत्सव की तैयारियां शुरू करवा देते थे।
इतिहासकारों की मानें तो होली के दिन अकबर के दरबार में खासी धूम देखने को मिलती थी। अकबर के महल में उन दिनों सोने और चांदी के बर्तनों में केसर की मदद से रंग तैयार किए जाते थे, जिसके साथ राजा अपनी बेगमों और हरम की महिलाओं के साथ होली खेला करते थे। शाम को दरबार में कव्वाली और मुशायरे का आयोजन किया जाता था, जहां लोग पाव इलायची और ठंडाई के साथ मेहमानों का स्वागत करते थे।
मुगल काल में होली को ईद गुलाबी के नाम से भी जाना जाता था। बता दें कि जहांगीर के शासन में होली पर महफिल-ए-होली का कार्यक्रम किया जाता था। इस दिन राज्य के आम नागरिक भी राजा के ऊपर रंग डालकर होली खेल सकते थे। वहीं जहांगीर के बेटे शाहजहां इस त्योहार को ईद गुलाबी त्योहार के रूप में मनाते थे।
बहादुर शाह जफर के शासनकाल में होली
आखिरी मुगल बादशाह कहे जाने वाले बहादुर शाह जफर के समय की होली भी बेहद खास होती थी। इतिहासकारों की मानें तो खुद बहादुर शाह जफर भी होली खेलने के बेहद शौकीन थे और होली को लेकर उनकी लिखी एक काव्य रचना को आज तक सराहा जाता था। मुगल काल में होली के बड़े ही खूबसूरत किस्सों का विवरण मिलता है। जहां बादशाहों और उनकी बेगमों के बीच होली खेलने का विवरण मिलता है।
होली से जुड़ी कहानी
वैसे तो होली के त्योहार से कई कहानियां जुड़ी हुई हैं, मगर इनमें सबसे प्रसिद्ध कहानी भक्त प्रहलाद की है। प्रभु विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद की प्रभु के ऊपर अटूट भक्ति। दरअसल बात यह है की, भक्त प्रह्लाद के पिता असुर सम्राट हिरण्यकशिपु था। वह हमेशा अपने को ही सर्व-शक्तिमान और ईश्वर मानता था। एक दिन उसने अपने पुत्र प्रह्लाद के भक्ति का मजाक उड़ाते हुए उसे सजा देने का सोचा। उसने अपने बहन होलिका को कहा की वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि के एक चीता पर बैठ जाये। खैर बता दूँ की, होलिका के पास पहले से ही ऐसे शक्तियाँ थी की उसे अग्नि से कुछ नहीं होने वाला था। परंतु जब वह भक्त प्रह्लाद के साथ अग्नि के चीता पर बैठी तो, अचानक प्रभु की लीला हुआ और होलिका उसी अग्नि में जल कर मर गई व प्रह्लाद बच गए। उनका प्रभु के प्रति विश्वास और अनूठा श्रद्धा आज भी लोगों को सुनाई जाती हैं।
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