भगवान विश्वकर्मा के बारे में कुछ रोचक बातें, जो शायद आपने कभी ना सुनी हो
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यह कब मनाया जाता है ?
प्रत्येक वर्ष प्रायः 17 सितंबर को मनाया जाने वाला विश्वकर्मा पूजा कभी-कभी 16 सितंबर को भी मनाया जाने लगा है। जबकि भारत के कुछ भागों में इसे दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है।
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ऋषि विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। इनके बारे मे कहा जाता है कि इस दिन ही भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन विश्वकर्मा पूजन किया जाता है।
भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम ‘नारायण’ अर्थात साक्षात विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ तथा धर्म के पुत्र ‘वास्तुदेव’ हुए। कहा जाता है कि धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए। पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।
यह मान्यता है कि भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और भगवान शिव का त्रिशूल भी ऋषि विश्वकर्मा ने ही बनाया था।
मान्यताओं के मुताबिक, भगवान विश्वकर्मा ने ही सोने की लंका से लेकर पुष्पक विमान तक बनाया था। विश्वकर्मा ने देवताओं के इस्तेमाल की सारी चीजें बनाई और इतनी खूबसूरती से बनाई की कोई भी उस पर मोहित हो जाए।
रोचक बातें -
पूरी दुनिया को बनाने वाले देवता और महान शिल्पीकार भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर भी कहा जाता है। आईए अब जानते हैं भगवान विश्वकर्मा के बारे में कुछ रोचक बातें-
1. भगवान विश्वकर्मा को सुतारों, सुनार, लोहार, मिस्त्री और हर ऐसे इंसान का देवता माना जाता है, जिसमें शिल्पकला का गुण होता है। माना जाता है कि उन्होंने ही चैथे उप वेद की खोज की और वो 64 यांत्रिक कला में निपुण थे।
2. विश्वकर्मा ने ही देवताओं के सारे हथियार और उड़ने वाले रथ बनाएं। पुष्पक विमान भी विश्वकर्मा का ही बनाया हुआ था। भगवान इंद्र के वज्र के साथ ही श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र को बनाने वाले भी विश्वकर्मा ही थे।
3. रावण की सोने की जिस लंका की चर्चा पूरे विश्व में थी, उसे भी विश्वकर्मा ने ही बनाया था। हालांकि, यह लंका हमेशा रावण की नहीं थी। हिंदू मान्यता के अनुसार, भगवान शिव और पार्वती ने गृहप्रवेश की पूजा में रावण को लंका में आमंत्रित किया था, क्योंकि रावण एक ब्राह्मण भी था। गृहप्रवेश समारोह के बाद भगवान शिव ने रावण से दक्षिणा मांगने को कहा, तो लंका की खूबसूरती पर मोहित रावण ने दक्षिणा में सोने की लंका ही मांग ली, और शिव जी ने इसे रावण को सौंप दिया।
4. कहा जाता है कि इंद्रप्रस्थ बहुत ही सुंदर नगर था। महल के फर्श से लेकर तालाब और कुएं तक बहुत ही खूबसूरत थे। इस खूबसूरत नगर को विश्वकर्मा ने ही बनाया था। यही खूबसूरत नगर महाभारत के युद्ध की वजह भी बना। जब पांडवों ने कौरवों को इंद्रप्रस्थ में आमंत्रित किया तो दुर्योधन ने सामने बने कुंड को समतल समझकर पैर रखा और गिर गया जिसे देखकर द्रौपदी जोर-जोर से हंसने लगी और दुर्योधन को ताने मारते हुए कहा अंधे का पुत्र अंधा। दुर्योधन अपने इस अपमान को भूल नहीं सका और महाभारत का युद्ध इसी का नतीजा था।
5. कृष्ण की नगरी द्वारका के निर्माता भी विश्वकर्मा ही थे। कहा जाता है कि द्वारका नगरी को विश्वकर्मा ने एक ही रात में बना दिया था। द्वारका के अलावा सतयुग में स्वर्गलोक और द्वापरयुग में हस्तिनापुर का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।
6. भारत के झारखंड के देवघर के बाबा मंदिर परिसर में कुल 22 मंदिर और 24 देवी-देवता विराजमान हैं। कहा जाता है कि इसका निर्माण खुद भगवान विश्वकर्मा ने किया था। मान्यताओं के अनुसार यहां पहले जंगल हुआ करता था, इसी जगह पर सभी देवताओं ने मंदिर स्थापना का निर्णय लिया। जिसके बाद देवशिल्पी को इसकी जिम्मेदारी दी गई। भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में इस मंदिर का निर्माण किया।
कहा जाता है कि जब भगवान विश्वकर्मा खुद के मंदिर को बैद्यनाथ मंदिर से भव्य बनाने में जुट गए, तभी सारे देवी-देवताओं ने देखा कि ये बाबा बैद्यनाथ के मंदिर से भव्य अपने मंदिर को बना रहे हैं, जो कि ठीक नहीं है। जब देवताओं ने उनसे कहा कि भोलेनाथ के मंदिर से बड़ा अपना मंदिर आप कैसे बना सकते हैं। तब वो नाराज हो गए और कहा कि वह जगन्नाथ हैं तो उनका ही मंदिर भव्य बनेगा।
भगवान विश्वकर्मा की हठ को देखते हुए देवताओं ने साथ मिलकर एक मुर्गे का रूप धारण किया। उसके बाद उन्होंने भगवान विश्वकर्मा को जगाकर बोला कि सुबह हो गई है, निर्माण कार्य को रोका जाए। विश्वकर्मा भगवान देवताओं के जाल में फंस गए और अपने मंदिर के कार्य को अधूरा ही छोड़ दिया। आज यह मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से जाना जाता है।
रूप
भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु एवं दस बाहु वाले तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले। उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं। यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है।
विश्वकर्मा पूजा के दिन सभी कल-कारखाने और फैक्ट्रियों में मशीनों की पूजा की जाती है। मजदूर और कारीगर खासतौर पर ये पूजा धूमधाम से बनाते हैं।
इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।
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