विद्या की देवी 'माँ सरस्वती' के बारे में कुछ अनसुनी बातें (वीडियो सहित)
ऋतुराज बसंत के आने से केवल इंसान ही नहीं बल्कि देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए आईये जानते हैं इस खूबसूरत बसंत से जुड़ी खास बातों को।
वीडियो यहाँ देखें - https://youtu.be/GRnAJhzFBPE
माघ का महीना लगते ही शरद ऋतु अपना बोरिया बिस्तर बांधने में जुट जाता है। पेड़−-पौधे पर नई कोंपलें और कलियां दिखने लगती हैं। नाना प्रकार के मनमोहक फूलों से धरती प्राकृतिक रूप से सज जाती है। खेतों में सरसों के पीले फूल की चादर की बिछी होती है। और, कोयल की कूक से दसों दिशाएं गुंजायमान रहती है। ऐसे सुवासित वातावरण में सभी को इंतजार होता है बसंत पंचमी का। यानी वह दिन जो हिंदू परम्परा के अनुसार मां सरस्वती को समर्पित है। यह दिन होली के आगमन का भी दिन माना जाता है।
माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का जन्म हुआ था। इसीलिए लोग न केवल उनकी आराधना करते हैं बल्कि उत्सव भी मनाते हैं। पहली बार विद्यालय जाने वाले बच्चों को भी कलम दवात से लिखना सिखाया जाता है। बच्चे मां सरस्वती की पूजा करते हैं क्योंकि वह ज्ञान की विपुल भंडार हैं। विद्या की तो वे देवी हैं। इस अवसर पर स्कूलों और कालेजों में भी उत्सव मनाया जाता है।
क्या है मान्यता
श्रीकृष्ण ने दिया था वरदान
सम्पूर्ण भारत में इस तिथि को विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी आराधना की जाएगी। पारंपरिक रूप से यह त्योहार बच्चे की शिक्षा के लिए काफी शुभ माना गया है। इसलिए इस दिन बच्चों की पढाई-लिखाई का श्रीगणेश किया जाता है। बच्चे को प्रथमाक्षर यानी पहला शब्दे लिखना और पढ़ना सिखाया जाता है। आन्ध्र प्रदेश में इसे विद्यारम्भ पर्व कहते हैं। यहां के बासर सरस्वती मंदिर में विशेष अनुष्ठान किये जाते हैं।
इसलिए पहनते हैं पीले कपड़े
मां के पीले वस्त्र शांति और प्रेम का प्रतीक हैं। इसलिए बसंत पंचमी के दिन लोग पीले रंग के परिधान पहनते हैं। गांवों-कस्बों में पुरुष पीला पाग (पगड़ी) पहनते है। ताकि उनका जीवन शांत और प्रेमपूर्ण हो। यों तो पीला रंग बसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। बसंत ऋतु फसल पकने का भी संकेत देता है। इस दिन जो भोजन बनता है इसमें भी रंग डालकर पीला किया जाता है।
हिन्दू परंपरा में पीले रंग को बहुत शुभ माना जाता है। यह समृद्धि, ऊर्जा और सौम्य उष्मा का प्रतीक भी है। इस रंग को बसंती रंग भी कहा जाता है। विवाह, मुंडन आदि के निमंत्रण पत्रों और पूजा के कपड़े को पीले रंग से रंगा जाता है।
होली की औपचारिक शुरुआत बसंत पंचमी के दिन से ही हो जाती है। इस दिन लोग एक-दूसरे को गुलाल-अबीर लगाते हैं। होली के होलिका दहन के लिए इस दिन से ही लोग लकड़ी को सार्वजनिक स्थागन पर रखना शुरू कर देते हैं, जो होली के एक दिन पहले एक मुहूर्त देख कर जलाई जाती है।
मां सरस्वती के वाहन का अपना अलग ही महत्व है। सफेद हंस सत्व−गुण (शुद्धता और सत्य) का प्रतीक है।
माना जाता है कि गुजरात और मध्य प्रदेश में फैले दंडकारण्य इलाके में मां सीता को खोजते हुए भगवान राम आये थे और यहीं पर मां शबरी का आश्रम था। कहा जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी यहां आये थे। इसलिए इस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रद्धा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
मां सरस्वती के तीन भक्त, जो अल्पबुद्धि होते हुए भी मां की कृपा से बने महान विद्वान
एक धार्मिक मान्यता के मुताबिक बसंत पंचमी के दिन ही ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना किया था। कालिदास, वरदराजाचार्य और बोपदेव माता सरस्वती के तीन ऐसे भक्त थे जो माता सरस्वती की पूजा-अर्चना की बदौलत अल्प बुद्धि होते भी महान विद्वान बन गए। आइए अब जानते हैं माता सरस्वती के इन तीनों भक्तों के बारे में-
महाकवि कालिदास: महाकवि कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि थे। कालिदास जी ने हिन्दू पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर अपनी रचनाएं संस्कृत में की। कालिदास जी की सबसे प्रसिद्द रचना ‘अभिज्ञानशाकुन्तल’ जबकि सर्वश्रेष्ठ रचना ‘मेघदूत’ मानी जाती है। कालिदास जी वैदर्भी रीति के कवि है।
वरदराज: वरदराज संस्कृत व्याकरण के महापंडित थे जिसकी वजह से उन्हें वरदराजाचार्य भी कहा जाता है। वरदराज महापंडित भट्टोजि दीक्षित के शिष्य थे। विद्यालय में वरदराज को मंदबुद्धि बालक कहा जाता था। वरदराज जी ने अपने गुरु की ‘सिद्धांतकौमुदी’ पर तीन ग्रंथों की रचना किया। इन तीनों ग्रंथों के नाम क्रमशः मध्यसिद्धांतकौमुदी, लघुसिद्धांतकौमुदी और सारकौमुदी हैं।
वोपदेव: वोपदेव, देवगिरी के यादव राजाओं के प्रसिद्द विद्वान मंत्री हेमाद्रि के समकालीन थे। वोपदेव यादव राजाओं के दरबार के मान्य विद्वान थे। वोपदेव एक कवि, वैद्द्य और वैयाकरण ग्रंथाकार थे। ‘मुग्दबोध’ वोपदेव जी द्वारा रचित व्याकरण का एक प्रसिद्द ग्रन्थ है। वोपदेव ने ‘मुक्ताफल’ और ‘हरिलीला’ नामक ग्रंथों की भी रचना किया है।
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