क्या ‘सेनापति’ यात्रा नेपाल-भारत रिश्ते को दे पाएगा नवतंरग? - Nai Ummid

क्या ‘सेनापति’ यात्रा नेपाल-भारत रिश्ते को दे पाएगा नवतंरग?

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निर्भय कर्ण

जैसे ही चीन के साथ भारत का तनाव लगातार बढ़ता चला गया वैसे-वैसे ही दिल्ली पर तनाव बढ़ता गया कि वो नेपाल के साथ रिश्तों में कैसे सुधार लाएं। इसी क्रम में पहले तो एकाएक राॅ के प्रमुख सामन्त कुमार गोयल नेपाल पहुंचे फिर भारतीय सेनापति मनोज मुकुन्द नरवाणे 4 नवंबर को यहां आए। वैसे तो सेनापति का नेपाल दौरा औपचारिक सद्भावना भ्रमण है लेकिन जिस समय में यह यात्रा हुयी, उसके कई मायने हैं। लेकिन क्या ये यात्रा नेपाल-भारत संबंधों में नवतरंग ला पाएगा। 


जब भारत ने लिपुलेक होते हुए चीन के मानसरोवर जाने वाली सड़क बनाकर उद्घाटन किया तो इसका नेपाल में काफी विरोध और आलोचना हुआ। जिसके बाद कालापानी, लिपुलेक और लिम्पियाधुरा इलाके को शामिल करते हुए नए नक्शे को नेपाल सरकार द्वारा संविधान संशोधन के तहत पारित कराने के बाद भारत ने अपनी अप्रसननता व्यक्त की थी। इसके बाद तो राजनीतिक तथा कुटनीतिक स्तर पर बातचीत लगभग रूक-सी गयी। नेपाल की ओर से बातचीत की पेशकश की गयी लेकिन नक्शा विवाद के कारण आपसी संवाद अवरूद्ध ही रहा। लेकिन जब भारतीय स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली और भारतीय समकक्षी नरेन्द्र मोदी के बीच टेलिफोन संवाद हुआ। तो कहा जाने लगा कि अब शायद डायलाॅग का रास्ता खुल जाएगा। लेकिन यह टेलिफोन संवाद एक सामान्य कुटनीतिक शिष्टाचार ही था। जिसके कारण बातचीत का वातावरण तैयार नहीं हो सका। 



लेकिन जब एकाएक आर्मी चीफ से पहले राॅ प्रमुख सामंत गोयल अपने 9 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ पिछले महीने गोपनीय यात्रा पर नेपाल पहुंचे। तो लगने लगा कि शायद अब बातचीत का रास्ता खुल जाएगा। और सेना प्रमुख के दौरे को लेकर कहा जाने लगा है कि राॅ प्रमुख ने पीएम केपी शर्मा ओली समेत यहां के प्रमुख नेताओं और अधिकारियों से कई दौर की वार्ताएं करके जनरल नरवणे की यात्रा की भूमिका तैयार की थी।

देखा जाए तो नेपाल-भारत सीमा विवाद के कारण दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध न्यूनतम स्तर पर पहुंचने के बाद नेपाल का दौरा करने वाले सेना प्रमुख जनरल नरवणे सर्वोच्च भारतीय अधिकारी हैं। वह 4 नवंबर को नेपाल पहुंचे। इससे पहले, दिन में उन्होंने पहाड़ों के ऊपर एक उड़ान का आनंद लिया और वह इस दौरान दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के प्रवेश द्वार सियांगबोचे हवाई अड्डे पर संक्षिप्त समय के लिए रुके। भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने अपने नेपाली समकक्ष जनरल पूर्ण चंद्र थापा से मुलाकात की और दोनों सेनाओं के बीच सहयोग और मित्रता के मौजूदा संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने के उपायों पर चर्चा की। जनरल नरवणे ने काठमांडू के बाहरी इलाके शिवपुरी में सैन्य कमान एवं स्टाफ कालेज में मध्यम स्तर के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित भी किया। उन्होंने इस दौरान प्रशिक्षु अधिकारियों के साथ अपने अनुभव साझा किया। बता दें कि जनरल थापा के निमंत्रण पर जनरल नरवणे तीन दिवसीय यात्रा पर नेपाल आए थे। नेपाल सरकार ने यात्रा की स्वीकृति फरवरी में ही दे दी थी। उसके बाद दोनों देशों में तालाबंदी की वजह से यात्रा का कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ सका था। उनकी यह यात्रा काफी हद तक दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने के मकसद से थी। 

  नेपाल थलसेना मुख्यालय द्वारा एक बयान के अनुसार, उन्होंने द्विपक्षीय हितों के मुद्दों के अलावा दोनों सेनाओं के बीच मित्रता और सहयोग के मौजूदा बंधन को और मजबूत बनाने के उपायों पर चर्चा की। बयान में कहा गया है कि उन्हें नेपाली सेना के इतिहास और वर्तमान भूमिकाओं के बारे में भी अवगत कराया गया। नरवणे सेना मुख्यालय में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए। ‘आर्मी पैविलियन’ में शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद उन्हें सेना मुख्यालय में ‘गार्ड आफ आनर’ दिया गया। उन्होंने पहले के वरिष्ठ सैन्य आगंतुकों की परंपरा के अनुसार सेना मुख्यालय में एक पेड़ भी लगाया। उन्होंने नेपाली सेना के दो ‘फील्ड’ अस्पतालों के लिए वेंटिलेटर, एम्बुलेंस और चिकित्सा उपकरण भी सौंपे। थापा ने नेपाल में बने 1,00,000 मेडिकल मास्क और शांति के प्रतीक के रूप में भगवान बुद्ध की एक मूर्ति नरवणे को भेंट की।

इस यात्रा के दौरान जनरल नरवणे और उनके प्रतिनिधिमंडल ने देवी कुमारी या जीवित देवी की पूजा करने के लिए बसंतपुर दरबार स्क्वायर क्षेत्र का दौरा भी किया। यह स्थल अपनी क्लासिक वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इस दौरान उन्होंने पारंपरिक नेपाली टोपी पहनी, जिसे ढाका टोपी के नाम से जाना जाता है। उनके प्रतिनिधिमंडल ने प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर पशुपतिनाथ मंदिर का भी दौरा किया। 

इसी यात्रा के दौरान 5 नवंबर को नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने भारतीय थल सेना के प्रमुख जनरल एम एम नरवणे को एक विशेष समारोह में नेपाली सेना के जनरल की मानद उपाधि प्रदान की। बता दें कि यह दोनों देशों की सेनाओं के बीच 70 सालों से चल रही परंपरा का हिस्सा है जो दोनों सेनाओं के बीच के मजबूत संबंधों को परिलक्षित करती है। इस दौरान दोनों सेना प्रमुखों ने वार्ता की और द्विपक्षीय सैन्य सहयोग को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा की। 

दोनों देशों के बीच वर्ष 1950 से एक-दूसरे के आर्मी चीफ को सेना प्रमुख की मानद उपाधि देने की परंपरा रही है। इस उपाधि से सम्मानित होने वाले जनरल नरवणे भारत के 18वें सेना प्रमुख थे।

प्रधानमंत्री ओली के विदेश मामलों के सलाहकार रंजन भट्टाराई के अनुसार, ओली ने कहा कि ‘‘नेपाल और भारत के बीच अच्छी मित्रता है।’’ ओली ने उम्मीद जतायी कि ‘‘दोनों देशों के बीच समस्याओं का समाधान बातचीत के जरिये होगा।’’ बैठक के दौरान, प्रधानमंत्री ओली ने नेपाल और भारत के बीच मौजूद सदियों पुराने विशेष संबंधों और एक-दूसरे के सेना प्रमुखों को सेना के मानद जनरल की उपाधि देने की परंपरा का उल्लेख किया। नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने 06 नवंबर को भारतीय सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे के साथ एक मुलाकात के दौरान कहा कि दोनों देशों के बीच समस्याओं का समाधान बातचीत के जरिये किया जाएगा। जनरल नरवणे ने ओली से शिष्टाचार भेंट की। जनरल नरवणे की तीन दिवसीय नेपाल यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों में नए सिरे से सामंजस्य स्थापित करना है।

जनरल नरवणे की यह यात्रा इस पूरे प्रकरण के बाद दोनों देशों के बीच पहली उच्च स्तरीय यात्रा है। इसके लिए जनरल नरवणे का चुना जाना भी दिलचस्प है क्योंकि मानचित्र विवाद विशेष रूप से उनके उस बयान के बाद भड़क गया था जिसमें उन्होंने कहा था कि नेपाल ‘किसी और के इशारे पर’ यह सब कर रहा है। नेपाल में उनके बयान का बहुत विरोध हुआ था। यहां तक कि नेपाल के रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने इस बयान को नेपाल के लिए ‘अपमानजनक’ बताया था।

लेकिन वर्तमान हालात में नरवणे ने अपने इस दौरे से दोनों देशों की सेनाओं के बीच बंधुता और मित्रता को मजबूत मिलने का भी भरोसा जताया है और साथ ही नेपाली प्रधानमंत्री का आभार भी जताया है। उन्होंने कहा, ‘मुझे यकीन है कि यह यात्रा दोस्ती के बंधन को मजबूत करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेगी, जो दो सेनाओं को पोषित करती है।’

अब यह देखना होगा कि इस यात्रा का दोनों देशों के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा, क्योंकि पिछले कुछ महीनों में यह रिश्ते बिगड़े हालात में हैं। यदि सब कुछ ठीक रहा तो यह उम्मीद की जा सकती है कि नेपाल और भारत के बीच हाल में सामने आए कई विवाद सुलझ सकते हैं। तीन दिवसीय दौरे पर नेपाल आए सैन्य प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे की यात्रा विवादों को सुलझाने में अहम भूमिका निभा सकती है। कुछ भी कहें लेकिन यह तो उम्मीद कर सकते हैं कि मौजूदा परिस्थितियों में भारत-नेपाल संबंधों में यह यात्रा एक महत्वपूर्ण सफलता हो सकती है।

नेपाल-भारत सीमा विवाद के हालिया घटनाक्रम पर एक नजर

3 नवंबर, 2019: भारत ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद, एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया जिसमें लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्र को भारत के हिस्से के रूप में दिखाया गया। नेपाल इन इलाकों पर अपना दावा करता है, हालांकि भारत इस दावे को खारिज करता रहा है।

7 नवंबर, 2019: नेपाल सरकार ने स्पष्ट किया कि कालापानी क्षेत्र नेपाल का हिस्सा है।

7 नवंबर, 2019: भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने अपने नए नक्शे में नेपाल के साथ सीमा में कोई हेरफेर नहीं किया।

20 नवंबर, 2019: भारत के नए नक्शे पर, नेपाल का भारत सरकार को एक ‘राजनयिक नोट’ भेजना, याद दिलाता है कि सुगौली संधि के अनुसार, लिम्पियाधुरा के पूर्व में काली (महाकाली नदी), कालिंदी और लिपुलेख क्षेत्र नेपाल की भूमि में है।

10 अप्रैल, 2020: भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कान्फेरेंस के माध्यम से धारचूला-लिपुलेख क्षेत्र में निर्मित कैलाश-मानसरोवर लिंक रोड नेटवर्क का उद्घाटन किया। इसमें से कुछ इलाकेे पर नेपाल द्वारा दावा किया गया। नेपाल ने कहा कि एकतरफा सड़क निर्माण, दोनों देशों के बीच बनी हुई आपसी समझ के खिलाफ है।

27 अप्रैल, 2020: भारतीय विदेश मंत्रालय ने जवाब दिया कि सड़क नेटवर्क उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में भारतीय सीमा के भीतर है।

7 जून, 2020: नेपाल की मंत्री परिषद द्वारा नेपाल का नया आधिकारिक राजनीतिक नक्शा जारी किया गया जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्र को नेपाल ने अपने इलाके में दिखाया।

12 जून, 2020: प्रतिनिधि सभा ने नेपाल द्वारा जारी किये गए नये नक्शे के अनुसार, निसान सील में संशोधन के लिए एक विधेयक भी पारित किया।ेे


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