पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज की अवतरण दिवस की आप सभी को बधाई ।
भोला झा गुरुजी :
यूं तो जीवन में गुरु के महत्व से हम सभी भली-भांति परिचित हैं । इस सांसारिक जीवन में हम अज्ञानी अवतरण लेते हैं पर गुरु का आशीर्वाद पाकर ज्ञानी मानव बन पाते हैं । धरा पर मानव से शक्तिशाली जीव विद्यमान हैं पर उन्हें अन्य जीवों से श्रेष्ठ ज्ञान हीं तो बनाता है। हमें उत्कृष्ट जीव की श्रेणी में गुरु स्थापित करते हैं। निर्विवाद रूप से गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। सीखने की प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों पर गुरु की भूमिका अलग होती है। कभी वे हमारे शैक्षणिक गुरु होते हैं तो कभी हमारे संस्कार निहित गुरु । गुरु किसी भी रुप में देवतुल्य माना जाता है। पर हमारे सफल मानवीय जीवन के लिए एक आध्यात्मिक गुरु का होना नितांत आवश्यक है। हमारा मानना है कि आध्यात्मिक गुरु वे हैं जो आपके मस्तिष्क में चल रहे हर तरंगों व जिज्ञासा को शांत कर दे। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज उन्हीं में से एक हैं । वे सौभाग्यशाली हैं जिन्हें इनका सानिध्य मिलता है। आज पूरे विश्व में स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के अरबों शिष्य हैं। विगत कई दिनों से आपके प्राकट्य दिवस को देश विदेश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।
अपनी भूमिका से भारत वर्ष को पुन: विश्वगुरू के रूप में उभारने वाले पूज्यपाद जगद्गुरु श्री शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज का जन्म 82 वर्ष पूर्व बिहार प्रान्त के मिथिलांचल में दरभंगा (वर्तमान में मधुबनी) जिले के हरिपुर बख्शीटोल गांव में आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी, बुधवार रोहिणी नक्षत्र, विक्रम संवत् 2000 तदानुसार दिनांक 30 जून 1943 को हुआ | देश-विदेश में उनके अनुयायी उनका प्राकट्य दिवस उमंग व उत्साहपूर्वक मनाते हैं | आपके पूज्य पिताजी पं श्री लालवंशी झा क्षेत्रीय कुलभूषण दरभंगा नरेश के राज पंडित थे एवं आपकी माताजी का नाम गीता देवी था | आपके बचपन का नाम नीलाम्बर झा था |
आपकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार और दिल्ली में सम्पन्न हुई है | दसवीं तक आप बिहार में विज्ञान के विद्यार्थी रहे | दो वर्षों तक तिब्बिया कॉलेज दिल्ली में अपने अग्रज डॉ श्री शुक्रदेव झा जी की छत्रछाया में शिक्षा ग्रहण की । पढ़ाई के साथ-साथ कुश्ती, कबड्डी और तैरने में अभिरूचि के अलावा आप फुटबाल के भी अच्छे खिलाड़ी थे | बिहार और दिल्ली में आप छात्रसंघ विद्यार्थी परिषद के उपाध्यक्ष और महामंत्री भी रहे | अपने अग्रज पं श्रीदेव झा जी के प्रेरणा से आपने दिल्ली में सर्व वेद शाखा सम्मेलन के अवसर पर पूज्यपाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज एवं श्री ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम के पीठाधीश्वर पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री कृष्णबोधाश्रम जी महाराज का दर्शन प्राप्त किया | इस अवसर पर आपने पूज्य करपात्री जी महाराज को हृदय से अपना गुरूदेव मान लिया | तिब्बिया कालेज में जब आपकी सन्यास की भावना अत्यंत तीव्र होने लगी तब आप बिना किसी को कुछ बताये काशी के लिए पैदल ही चल पड़े | इसके उपरांत आपने काशी, वृन्दावन, नैमिषारण्य, बदरिकाआश्रम, ऋषिकेश, हरिद्वार, पुरी, श्रृंगेरी आदि प्रमुख धर्म स्थानों में रहकर वेद-वेदांग आदि का गहन अध्ययन किया | नैमिषाराण्य के पू्ज्य स्वामी श्री नारदानन्द सरस्वती जी ने आपका नाम ‘ध्रुवचैतन्य’ रखा | आपने 7 नवम्बर 1966 को दिल्ली में देश के अनेक वरिष्ठ संत-महात्माओं एवं गौभक्तों के साथ गौरक्षा आन्दोलन में भाग लिया |
बैशाख कृष्ण एकादशी गुरूवार विक्रम संवत् 2031 तद्नुसार दिनांक 18 अप्रैल 1974 को हरिद्वार में आपका लगभग 31 वर्ष की आयु में पूज्यपाद धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के करकमलों से सन्यास सम्पन्न हुआ और उन्होंने आपका नाम ‘निश्चलानन्द सरस्वती’ रखा | श्री गोवर्धन मठ पुरी के तत्कालीन 144 वें शंकराचार्य पूज्यपाद जगद्गुरू स्वामी निरन्जनदेव तीर्थ जी महाराज ने स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती को अपना उपयुक्त उत्तराधिकारी मानकर माघ शुक्ल षष्ठी रविवार वि संवत् 2048 तद्नुसार दिनांक 9 फरवरी 1992 को उन्हें अपने करकमलों से गोवर्धनमठ पुरी के 145 वें शंकराचार्य पद पर पदासीन किया | शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने के तुरन्त बाद आपने ‘अन्यों के हित का ध्यान रखते हुए हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श की रक्षा, देश की सुरक्षा और अखण्डता’ के उद्देश्य से प्रामाणिक और समस्त आचार्यों को एक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए राष्ट रक्षा के इस अभियान को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान कराने की दिशा में अपना प्रयास आरंभ कर दिया।पूज्यपाद महाराज श्री का अभियान मानव मात्र को सुबुद्ध, सत्य सहिष्णु और स्वावलम्बी बनाना है | उनका प्रयास है कि पार्टी और पन्थ में विभक्त राष्ट को सार्वभौम सनातन सिद्धान्तों के प्रति दार्शनिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक धरातल पर आस्थान्वित कराने का मार्ग प्रशस्त हो | उनका ध्येय है कि सत्तालोलुपता और अदूरदर्शिता के वशीभूत राजनेताओं की चपेट से देश को मुक्त कराया जाये | बड़े भाग्यशाली हैं वे लोग जिन्हें विश्व के सर्वोच्च ज्ञानी के रूप में प्रतिष्ठित आप जैसे महात्मा का सानिध्य पाने का सुअवसर प्राप्त होता है। परमपूज्य गुरूदेव के चरणों में कोटिश: नमन तथा चन्द्रमौलीश्वर भगवान से आपके दीर्घायुष्य एवं आसेम्यता के लिए प्रार्थना प्रेषित है। हम मिथिलावासी को आपकी बौद्धिकता, दर्शन, कृति, यश पर अतिरेक गर्व हो रहा है। आप मिथिला की प्राचीन पांडित्य परंपरा को पुनः जीवंत कर दिया है।
छायाचित्र में वंदनीय पूजनीय पूरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज।
Leave Comments
एक टिप्पणी भेजें