आखिर, नेपाल इतना महंगा क्यों है? - Nai Ummid

आखिर, नेपाल इतना महंगा क्यों है?


रजनीश कुमार : 

नेपाल की राजधानी काठमांडू से चितवन की दूरी लगभग 170 किलोमीटर है । वहाँ जाने के लिए एक टैक्सी किया। टैक्सी के तौर पर स्कॉर्पियो मिली। टैक्सी ड्राइवर लक्ष्मण लौडारी भारत समेत सऊदी अरब में 10 साल तक रहे हैं। लक्ष्मण ने काठमांडू से चितवन आने-जाने के लिए लगभग 11 हज़ार भारतीय रुपए लिए। अगर दिल्ली में इतनी दूरी के लिए यही टैक्सी करते, तो लगभग चार हज़ार रुपए देने पड़ते।

लक्ष्मण से पूछा कि इतना ज़्यादा पैसा क्यों ले रहे हैं? 

इस पर लक्ष्मण ने हँसते हुए कहा, "मुझे सरकार लूट रही है और हम जनता को लूट रहे हैं। आपको पता है मैंने ये स्कॉर्पियो कितने में ख़रीदी है? दो साल पहले सेकंड हैंड ये स्कॉर्पियो लगभग 22 लाख भारतीय रुपए में ख़रीदी थी। भारत में तीन लाख रुपए और लगा देता तो दो नई स्कॉर्पियों ख़रीद लेता। अब ये मत पूछिएगा कि इतना पैसा क्यों चार्ज कर रहे हैं।"

लक्ष्मण ग़ुस्से में कहते हैं, हमसे सरकार केवल वसूली करती है और देती कुछ नहीं है।"

दरअसल, नेपाल में सरकार मोटर वीइकल टैक्स बोरा भरकर लेती है। नेपाल सरकार भारत से गाड़ी ख़रीदने पर एक्साइज, कस्टम, स्पेयर पार्ट्स, रोड और वैट मिलाकर कुल 250 फ़ीसदी से ज़्यादा टैक्स लेती है। इस वजह से यहाँ गाड़ियाँ भारत की तुलना में लगभग चार गुनी महंगी मिलती हैं।

बाइक की क़ीमत भी नेपाल आसमान छू रही है। नेपाल सरकार का कहना है कि ये लग्ज़री कैटिगरी में हैं, इसलिए ज़्यादा टैक्स लगाए जाते हैं।

हालाँकि नेपाल में पब्लिक ट्रांसपोर्ट इतनी भी अच्छी नहीं है कि इन्हें लग्ज़री समझा जाए।

काठमांडू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर विश्व पौडेल कहते हैं, "जब तक नेपाल में राणाशाही रही, तब तक यहाँ के लोगों को खुलकर जीने नहीं दिया गया। राणाशाही को नेपालियों के सुख-सुविधा में जीने देना पसंद नहीं था। वहीं चीज़ें आज भी जारी हैं।"

"मोटर-गाड़ी पर 250 से 300 प्रतिशत तक टैक्स लगाने का कोई मतलब नहीं है। अच्छा होता कि सरकार इसके बदले टोल टैक्स लेती और सड़क बनाने पर ज़्यादा ज़ोर देती। काठमांडू से वीरगंज की दूरी 150 किलोमीटर से भी कम है और वहाँ से ट्रकों को आने में दो दिन का वक़्त लेता है। नेपाल में सड़कों की हालत बहुत बुरी है।"

विश्व पौडेल कहते हैं कि सरकार को राजस्व बढ़ाने का कोई और ज़रिया समझ में नहीं आता इसलिए बेमसझ और बेशुमार टैक्स लगाती है।

वो कहते हैं, "नेपाल विदेशी मुद्रा के लिए टैक्स और विदेशों में काम कर रहे अपने नागरिकों पर निर्भर है। यहाँ निवेश के नाम पर सन्नाटा है। कोई निवेश भी करने आता है, तो बुनियादी सुविधाएँ नहीं हैं। सड़क, बिजली, पानी, स्किल्ड लेबर और सुगम सरकारी तंत्र नहीं है। एक मानसिकता ये भी है कि कोई विदेशी कंपनी आएगी, तो देश पर क़ब्ज़ा कर लेगी। ऐसे में कौन निवेश करेगा।"

विश्व पौडेल कहते हैं कि नेपाल की सरकार नहीं चाहती है कि नागरिकों को सस्ते में सामान मिले। बात केवल कार और बाइक की नहीं है। यहाँ खाने-पीने के सामान भी उतने ही महँगे हैं। एक कप चाय के लिए कम से कम 14 भारतीय रुपए देने होंगे।

रेस्तरां में खाने जा रहे हैं, तो एक हज़ार रुपए से कम नहीं लगेंगे। यहाँ मटन 900 रुपए किलो है। अभी आलू का सीज़न है, लेकिन यहाँ नेपाली रुपए में आलू 45 रुपए किलो है और प्याज 90 रुपए किलो है।

भारत की आरबीआई की तरह नेपाल में राष्ट्र बैंक है। नेपाल राष्ट्र बैंक के पूर्व कार्यकारी निदेशक नरबहादुर थापा कहते हैं कि क़ीमतों की तुलना भारत से करने का कोई मतलब नहीं है।

थापा कहते हैं, "हम लैंडलॉक्ड देश हैं। हम समंदर से जुड़े नहीं हैं। नेपाल के कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 65 फ़ीसदी से ज़्यादा भारत से होता है। वो भी एकतरफ़ा है। हम आयात ज़्यादा करते हैं। निर्यात के नाम पर कुछ कृषि उत्पाद हम भारत से बेचते हैं। ऐसे में देश को चलाने के लिए राजस्व जुटाने का विकल्प भारी टैक्स के आलावा कुछ दिखता नहीं है।"

नरबहादुर थापा कहते हैं, "नेपाल की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 35 अरब डॉलर का है। इसमें सबसे ज़्यादा योदगान सर्विस और कृषि सेक्टर का है। मैन्युफैक्चरिंग न के बराबर है। हम नेपाल की तुलना बांग्लादेश से भी नहीं कर सकते हैं। बांग्लादेश के पास समंदर है। मेरे पास तो भारत के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है। चीन है, तो अभी चीज़ें विकसित नहीं हो पाई हैं।"

हालाँकि विश्व पौडेल कहते हैं कि बांग्लादेश अगर रेडिमेड कपड़ा बनाने में अव्वल हो सकता है, जेनरिक दवाइयाँ बनाने में भारत के बाद दूसरे नंबर पर आ सकता है, तो नेपाल ऐसा क्यों नहीं कर सकता है।


वो कहते हैं, "एक तो यहाँ राजनीतिक माहौल नहीं है। ढंग से पढ़े-लिखे नेपालियों को यहाँ एक अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती। अगर कोई बिहारी खाड़ी के देशों में नौकरी करता है, तो वो एक साल कमाकर बिहार में अपना अच्छा घर बना लेता है। वही काम नेपाली नहीं कर सकता। नेपाली को घर बनाने में कम से कम एक करोड़ रुपए ख़र्च करने होंगे।"

नेपाल ऑटोमोबिल डीलर असोसिएशन के अध्यक्ष कृष्ण प्रसाद दुलाल कहते हैं कि टैक्स से देश चल रहा है, तो भारी टैक्स लगाया जा रहा है। दुलाल कहते हैं, "नेपाल में पिछले 40 सालों से कोई नई सड़क नहीं बनी। सरकार बहाना करती है कि टैक्स नहीं लगाएँगे, तो सड़क पर गाड़ियाँ बढ़ जाएँगी। अब ये तो अजीब बात है कि पिछले चार दशक से सड़क नहीं बनाओ और गाड़ियाँ कम करने के लिए भारी टैक्स लगा दो।"

दुलाल कहते हैं, "ये जनता को बताते हैं कि नेपाल में गाड़ियाँ ज़्यादा हो गई हैं, जबकि सच ये है कि नेपाल में सड़कें कम हैं। ये 300 फ़ीसदी टैक्स ले रहे हैं। इन्हें सड़क बनाने पर ध्यान देना चाहिए था। लेकिन सारे प्रोजेक्ट लटके पड़े हैं।"

"राजनीतिक अस्थिरता थमने का नाम नहीं ले रही। ऐसे में विकास कहाँ से होगा। 90 फ़ीसदी गाड़ियाँ भारत से नेपाल में आती हैं। अब बजाज और टीवीएस बाइक की एसेंबलिंग नेपाल में ही शुरू होने जा रही है। हालाँकि इसका फ़ायदा जनता को शायद ही मिले। इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार टैक्स कम करे।"

दुलाल कहते हैं कि यहाँ टैक्सी का किराया इसलिए भी ज़्यादा है, क्योंकि स्पेयर पार्ट्स पर 40 फ़ीसदी का टैक्स लगता है। सड़कें ख़राब हैं, तो सर्विसिंग जल्दी करानी पड़ती है। जाम भयानक लगता है।

इसमें टाइम और तेल की खपत भी ज़्यादा होती है। दुलाल कहते हैं कि अभी कोई उम्मीद नहीं दिखती कि सरकार इन पर टैक्स कम करेगी।

नेपाल में बिजली भी काफ़ी महंगी है। यहाँ के लोग 12 रुपए प्रति यूनिट से बिजली का बिल भरते हैं। सड़क किनारे जिन सैलूनों में भारत में 20 से 50 रुपए में हेयर कटिंग हो जाती है, वही हेयर कटिंग के लिए यहाँ 220 नेपाली रुपए देने पड़ते हैं। किताब, नोटबुक, कलम और दवाइयाँ में नेपाल में बहुत महंगी हैं।

मधेस में रोहतट के शिवशंकर ठाकुर काठमांडू के धोबीघाट इलाक़े में सड़क किनारे बाल काटते हैं। उन्होंने जब बाल काटने के बाद 220 रुपए लिए, तो मैंने कहा कि बहुत ही ज़्यादा ले रहे हैं। शिवशंकर ठाकुर ने कहा आप अंदाज़ा लगाइए हम इस झोपड़ी का किराया कितना देते हैं... मैंने कहा- दो हज़ार रुपए। शिवशंकर ठाकुर हँसने लगे और बोले कि इसका किराया 10 हज़ार है।

अगर आप नेपाल ये सोचकर घूमने आते हैं कि सस्ते में घूम लेंगे, तो निराशा हाथ लगेगी। पोखरा और सोलुखुंबु को सिंगापुर जितना महंगा बताया जाता है। सोलुखुंबु वही जगह है जहां से माउंट एवरेस्ट पर लोग चढ़ाई शुरू करते हैं।

साभार : बीबीसी हिंदी

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