विविध
हजल - मनुष छियै की मनुषक झर
हजल
जकरा बुते उठल नै खर
कहत बनेलौं नवका घर
एक दिन बर जोतलनि हर
हगलनि पदलनि लगलनि जर
घिनमाघिन चललै सबतरि
हम छियै उपर तूँ छी तर
मौगी खातिर रूसल छौड़ा
नोकरी चाकरी ठां नै ठर
साँच किए बजलियै अहाँ
मनुष छियै की मनुषक झर
लेखक - कुन्दन कुमार कर्ण
Previous article
Next article
Leave Comments
एक टिप्पणी भेजें