पारिस्थितिकी तंत्र को बचाना हम सब का सामूहिक दायित्व
भोला झा गुरुजी
इस वर्ष की थीम "Ecosystem Restoration "
" पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्बहाली "
सभ्यता के आरम्भ से लेकर अद्यतन मानव का जन्तु एवं वनस्पति के साथ अन्योनाश्रय संबंध है। अगर हम पुरातन इतिहास पर दृष्टिपात करें तो ज्ञात होता है कि मानव का विकास एककोशीय जीव के क्रमिक परिणामस्वरूप हुआ है। विश्व धरा पर जीव जंतु की सलामती के लिए पारिस्थितिकी संतुलन अत्यावश्यक है। पारिस्थितिकी के मूल घटकों में से किसी एक की भी कमी या अधिकता के कारण हलचल होना स्वाभाविक है। सभी जीव जंतु में मानव सर्वाधिक ज्ञानी प्राणी है। इसलिए वे ही अपने पांव पर कुल्हाड़ी चलाने से परहेज़ नहीं करते हैं ठीक उसी प्रकार जैसे कालीदास जिस शाखा पर बैठा था उसी को काटे जा रहा था। कालीदास उस क्रिया को अज्ञानतावश कर रहा था पर आज के मानव जो सूर्य चंद्रमा पर अपना आशियाना तलाश रहे हैं उनसे ऐसी बर्बरता रुपी संकट को उत्पन्न करने में अपनी भूमिका को संलग्न रखते हैं जो हमारे जीवन को दूभर बनाता है, निंदनीय है। हमें मालूम है कि पर्यावरण के अभिन्न अंग पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण के उपरांत पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन उत्सर्जित करते हैं और वही आक्सीजन हम श्वसन क्रिया के माध्यम से लेकर जीवित रहते हैं। यह जानते हुए, हम अपनी तात्कालिक भौतिक सुखोपभोग के लिए पेड़ पौधे को दिन प्रतिदिन ह्वांस करते जा रहे हैं। जिस आक्सीजन के बिना हम पल भर जी नहीं सकते,उसी के प्रणेता एवं स्रोत के सबसे बड़े दुश्मन ज्ञानी इंसान सदैव खड़ा है।
आज सम्पूर्ण मानवता वैश्विक महामारी कोरोना से जुझ रहा है। अभी तक इसका कोई ठोस इलाज ईजाद नहीं हो पाया है। हमारे शरीर में जितनी भी बिमारियों उत्पन्न होती हैं वह प्रकृति की कमियों के कारण और उसका निदान भी प्रकृति के गोद में ही जाना है। मानव के सभी शारीरिक कष्टों का निवारण प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से ही होता है। आज कोरोना का तात्कालिक ईलाज के लिए हमलोग अपनी शारीरिक इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए पर्यावरण के घटक तुलसी,अदरक, लौंग, इलायची, दालचीनी, कालीमिर्च,हल्दी,मेथी, नींबू आदि का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन कर रहे हैं। भारतीय परंपरा और भारतीयों को अपने संस्कृति पर भरोसा होना ही तो कोरोना के कारण होनेवाले मृत्यु दर विदेशों की तुलना में भारत में काफी कम है। पृथ्वी को सामूहिक प्रयास के द्वारा फिर से अच्छी अवस्था में लाया जा सकता है | क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुके पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से उसके मूल रूप में लाया जा सकता है |इसमें उन पारिस्थितिकी तंत्रों का संरक्षण भी शामिल है जो नाजुक हैं और अभी भी बरकरार हैं |
अतः आज के दिन हम प्रण लें कि अपने परिधे में कटते हुए पेड़ पौधे को रोकना है और एक पेड़ के बदले कमसे कम पांच पेड़ पौधे लगाना है। तभी इस दिवस की प्रासंगिकता देश काल परिस्थिति में परिभाषित की जा सकती है।
(लेखक शिक्षाविद् हैं)
Email- bj241974@gmail.com
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