कोरोना से बड़ी महामारी ‘गरीबी’
कोरोना काल में आम आदमी की जिंदगी और सरकारी व्यवस्था की सच्चाई को सबके सामने रख दिया। देश के दिहाड़ी मजदूर, गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों पर दुख का पहाड़ टूटा। जिंदगी से जद्दोजहद कर रहे लोगों की परेशानी और पीड़ा ने रोंगटें खड़े कर दिये। इसके अलावा गरीबों के पेट के लिये कोरोना की बीमारी आफत बनकर टूटी।
कोरोना बीमारी से जितने लोगों की जान नहीं गयी उससे अधिक इसके खौफ और अन्य रोगों का समय पर सही तरीके से इलाज नहीं होने के कारण जान चली गयीं। इसके बावजूद अब तक कोरोना संक्रमण घटने के बजाय लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में सभी के जेहन में था कि आखिर कब तक अपने काम-धंधे को बंद कर अपने घरों में सिमटे रहें। इन 6 महीने में ही लोग भूखमरी के कगार पर आ चुके हैं। और यह और ज्यादा दिनों तक चले तो क्या होगा, यह तो भगवान ही जानें। कुल मिलाकर देखा जाए तो अब सबसे बड़ा दुश्मन कोरोना ना होकर अब इसकी जगह गरीबी और बेरोजगारी ने ले लिया है।
शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए दुनिया के तमाम देशों में लाॅकडाॅन हटा दिया गया और कुछ नियम-शर्ताें के साथ लगभग सभी सेक्टर को खोल दिया गया। ताकि अर्थव्यवस्था के साथ-साथ लोगों की गरीबी और बेरोजगारी में सुधार हो सके। इन सब चीजों से नेपाल भी अछूता नहीं है। नेपाल भी अपने पड़ोसी देशों खासकर भारत की राह पर चल पड़ा है। और जैसे-जैसे भारत ने अपने लाॅकडाॅन में ढ़ील देना शुरू किया वैसे ही नेपाल भी अपने यहां लाॅकडाॅन में ढील देते हुए निषेधाज्ञा को हटा दिया। ऐसे में कोरोना के कहर के बीच बेरोजगारी की मार झेल रहे नेपाली श्रमिक अब अपने वतन से पलायन कर भारत के विभिन्न प्रांतों की ओर लौटने लगे।
लोग तो पहले से ही बेरोजगारी और गरीबी की मार से जूझ रहे थे। ऐसे में निषेधाज्ञा में छूट होते ही अपने-अपने कार्यस्थलों की ओर लौटने के लिए प्रयास करने लगे। भारत में कोरोना फैलने के बाद काफी संख्या में भारत में काम कर रहे लोग नेपाल लौट गए थे। और निषेधाज्ञा हटते ही लोग तेजी से भारत की ओर लौटने का प्रयास करने लगे।
जहां एक ओर भारत में हर दिन 90 हजार से अधिक कोरोना पाजिटिव केस सामने आ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर नेपाल में अब तक करीब 58 हजार कोरोना के मामले ही सामने आए हैं। वहां औसतन हर दिन 1500 से 2000 नए मामले सामने आ रहे हैं। इसे देखते हुए नेपाल के लोग कोरोना के लिहाज से भारत के हालात देख डरे हुए हैं। लेकिन नेपाल में इन दिनों बेरोजगारी भी चरम पर पहुंची हुई है। इसी को देखते हुए नेपाली श्रमिक जान हथेली पर रखकर भारत में काम की तलाश में लौट रहे हैं।
कोरोना फैलने के बाद नेपाली श्रमिक नेपाली नागरिकता का प्रमाणपत्र दिखाकर नेपाल वापस लौटे थे। लेकिन अब काम के लिए भारत वापस जाने के लिए भारतीय आधार कार्ड दिखाकर सीमा पार कर रहे हैं। जिसके पास यह नहीं है उसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है। इसी क्रम में विपन्न और बेरोजगार नेपालियों से राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि दिखाने के लिए कहा जा रहा है। जिसके पास यह नहीं है वह वापस अपने नेपाल के गांव जाने को तैयार नहीं। यदि पहले दिन भारत जाने में विफल हो जाते हैं तो वह दूसरे दिन के लिए प्रयास करते हैं। लेकिन कोशिश लगातार जारी है। वजह साफ है गरीबी और बेरोजगारी।
वैसे तो कोरोना महामारी के साथ-साथ बेरोजगारी की समस्या पूरे विश्व में है। ऐसे में रोजगारी को बढ़ावा देना अपने आप में चुनौतीपूर्ण है। इसलिए संबंधित विशेषज्ञों ने सरकार को इस बारे में सजग कराते हुए रोजगारी बढ़ाने श्रृजनशील या कार्यक्रम लाने का सुझाव दिया था। वर्ष का आधा समय बीत चुका है। सरकार द्वारा गत् ज्येष्ठ 15 गते लाए गए इस आर्थिक वर्ष के बजट में रोजगारी श्रृजन में जोड़ देने के लिए कहा गया था। देश के अंदर ही रोजगार गंवाने वाले और वैदेशिक रोजगारी से वापस आने वालों के लिए काम का अवसर श्रृजन करने जैसे चुनौती के लिए बजट में संबोधन किया गया। जनता के लिए काम और रोजगारी का अवसर हेतु बजट में क्षेत्रगत और कार्यक्रमगत प्राथमिकता निर्धारण का तीसरे बूंदें में उल्लेख किया गया।
‘प्रधानमन्त्री रोजगार कार्यक्रम’ के अंतर्गत 2 लाख लोगों को रोजगारी देने के उद्देश्य से बजट में 11 अरब 60 करोड़ रूपया का प्रावधान किया गया। इसका एक तिहाई से अधिक रकम स्थानीय तह में जा चुका है। इसी प्रकार विदेश से वापस आए कोरोना प्रभावित 50 हजार लोगों के लिए सीप विकास, तालिम और प्रविधि पहुँच विस्तार करने के उद्देश्य से 1 अरब रूपया का विनियोजन किया गया है। इसके अलावा रोजगारी श्रृजन के लिए सरकार ने युवा स्वरोजगार कोष, श्रम सूचना बैंक से लेकर सीप रूपान्तरण जैसे कार्यक्रमों के रकम को बढ़ाया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग 8 लाख लोगो के लिए रोजगारी का श्रृजन करने का दावा बजट में किया गया है।
रोजगारी श्रृजन में इतनी अधिक प्रतिबद्धता वाले बजट के कार्यान्वयन का तीन महीना बीत चुका है। लेकिन जनता को अब तक सरकार के इन कार्यक्रमों पर कोई भरोसा नहीं हो पाया है। क्यूंकि जमीनी स्तर पर जनता को कुछ दिख ही नहीं रहा है। अधिकतर स्थानीय से लेकर प्रदेश तक इस बारे में कहा जा रहा है कि लाॅकडाॅन और बन्दाबन्दी के कारण काम को आगे नहीं बढ़ाया जा सका है।
ऐसे में रोजगार के लिए भारत की ओर लौट रहे बेरोजगारों का कहना है कि नेपाल में रोजगार उपलब्ध हो जाए तो कोई क्यों बाहर जाए। जनता के कर का सही इस्तेमाल हो तो सब कुछ संभव है। घर में बूढ़े मां-बाप, पत्नी, बच्चे हैं। आखिर कैसे इनका निर्वहन करें। कमाना तो जरूरी है ना। लगभग यही कहानी हर बेरोजगारों की कहानी है।
जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको कोरोना से जान का खतरा नहीं है। तो वह कहते हैं जान से किसे प्यार नहीं होता है। लेकिन भूख से मरने से अच्छा है कि कोरोना से मर जाएं। अब कोरोना से बड़ा दुश्मन गरीबी और बेरोजगारी है न कि कोरोना। अभी 6 महीने तक कर्ज लेकर घर चलाया लेकिन अब कर्ज देने वाला नहीं। उल्टा कर्जदाता अपना कर्ज वापस मांग रहे हैं। आखिर कहां से उन्हें पैसा दूं और कैसे अपने परिवार को पालूं। इसलिए अब जरूरी हो गया है कि रोजगार किया जाए। लगभग यही कहानी सभी नेपाल-भारत सीमा पर है जो भारत जाने के लिए पंक्ति में खड़े होकर अपी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
सशस्त्र प्रहरी तथ्यांक के मुताबिक लगभग प्रतिदिन औसतन 1000 नेपाली भारत जा रहे हैं। बीते समय में लगभग 50000 नेपाल भारत की ओर लौटे। लेकिन लाकडाॅन में भारतीय नागरिक को ही केवल भारत प्रवेश की अनुमति है। लेकिन भारतीय आधार कार्ड वाले नेपाली सहज ही भारत जा पा रहे हैं लेकिन जिनके पास यह नहीं है वे लोग विभिन्न तरीकों को अपनाकर भारत प्रवेश करने पर बाध्य हैं। मतलब साफ है अब इनके लिए बड़ा शत्रु कोरोना ना होकर बेरोजगारी है।
ये लोग कोरोना संक्रमण के डर से भारत से घर लौटे थे लेकिन अब बेरोजगारी के डर से विवश होेकर भारत लौट रहे हैं। सशस्त्र प्रहरी के तथ्यांक की मानें तो लाॅकडाॅन के पांच महीने की अवधि में भारत से नेपाल लौटने वालों की संख्या करीब पाँच लाख थी। वहीं इस अवधि में 2 लाख 25 हजार से अधिक लोग नेपाल से भारत गए थे। इनमें से अधिक भारतीय थे जबकि 50 हजार नेपाली होने का अनुमान है।
कोरोना वायरस को वैश्विक महामारी घोषित करने के छह महीने बाद अलग-अलग देश महामारी से कैसे प्रभावित हुए हैं, ये समझने के लिए बीबीसी ने करीब 30,000 लोगों के बीच सर्वे किया? दुनिया के कई देशों में कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन लगाया गया। इसका इन देशों की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ा। गरीब देश और युवाओं का कहना है कि वो महामारी के कारण अपनी जिंदगी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं।
सर्वे में ये जानकारी सामने आई है कि गरीब देशों के लोगों पर महामारी का गंभीर असर पड़ा है और इसने लोगों के बीच पहले से मौजूद असमानता की खाई को और बढ़ा दिया है।
इस कोरोना काल में एक बात और दिलचस्प मामला निकल कर आया है वो है ‘आत्महत्या’। कोरोना संक्रमण के इस दौर में ‘आत्महत्या’ की दर में काफी उछाल आया। नेपाल में गत सावन महीने में 709 लोगों ने आत्महत्या किया। यानि कि वर्तमान यानि चालू आर्थिक वर्ष के पहलेे महीने के आंकड़ा के अनुसार, प्रतिदिन 22 लोगों ने आत्महत्या की। देखा जाए तो कोरोना महामारी शुरू होने के बाद आत्महत्या दर में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुयी है। पहले से इसकी तुलना करें तो वर्तमान में आत्महत्या के कारकों में कोरोना वाइरस सबसे बड़ा कारक बनकर उभरा है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो बगैर किसी तैयारी के देश में जब पूर्ण तालेबंदी की गयी तो आम जनता के जीवन मेें तूफान सा आ गया। सरकार को भी इस बात का एहसास नहीं था कि सड़कों पर गरीबी, लाचारी और बेबसी का यह स्वरुप देखने को मिलेगा। गरीब व लाचार व्यक्ति दो रोटी के लिये तरसेगा और मौत उन्हें उठा ले जायेगी। विकास की गाथा लिखने वालों ने इसकी तनिक परवाह भी नहीं की होगी इस तरह के हालात उत्पन्न हो जायेगी। घर में कैद रहने की सलाह देना तो आसान है लेकिन उसके घर के बुझते चुल्हे पर ध्यान देना उससे कहीं ज्यादा कठिन है। कबाड़ चुनने वाली महिलाएं, दिहाड़ी करने वाले मजदूर, सड़क पर खोमचे व पकौड़ी बेचकर अपना जीविकापार्जन चलाने वाले लोगों को आज भी पहले की तरह जिंदगी सामान्य होने का इंतजार है।
Leave Comments
एक टिप्पणी भेजें